Wednesday, October 19, 2016

कुश के दोहे

राम बसेंगे मंदिर जब, आएगा राम-राज |
मंदिर बनने मात्र से,  नहीं बनेंगे काज ||
(परस्पर राम-मंदिर को चुनाव पर मुद्दा बनाने पर )

ज़िन्दगी की अनिश्चितता, से लोग परेशान ||
पिन से ज्यादा सुई चुभे, जिसका पूर्वानुमान |
(जिदगी की अनिश्चितता ही उसे दिलचस्प बनाती है )

मथी जा रही ज़िन्दगी, रस्सी से दिन-रात |
एक सिरे पे ख्वाहिशें, दूजे पे औकात ||
( ज़िन्दगी तो बस ख्वाहिश और औकात के बीच की कशमकश है )

नहीं पाठशाला गये,  ना पोथी का ज्ञान  |
सुनी आत्मा की सदा, बना कबीर महान ||
(हमारी शिक्षा प्रणाली क्यों अच्छे कामगार तो दे पाती है पर अच्छे विचारक नहीं.!)

उसका पुतला फूंकते, जो कहता श्री राम |
महिसासुर के वंशधर, भुगतेंगे परिणाम ||
(JNU में विजयादशमी के अवसर में मोदी का पुतला फूंका गया)

तशरीफ़ को शरीफ जी , फिरते लेकर भाग |
पानी हिंदुस्तान का, बुझा न पाए आग ||
(सिन्धु जल संधि और surgical strike के बाद शरीफ परेशान )

"गणित" में कमजोर वही, जो जन होए उदार |
ढीले जो "इतिहास" में, मिलनसार व्यवहार || 
(इतिहास हमेशा विवादित रहा है | घटना को लेकर सबके अलग-अलग विचार होते हैं, 
इसलिए इतिहास पर बहस अक्सर कई गुट बना देती है )

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे नोट हज़ार |
चुकता न किराया कहीं, मिलता न लेनदार ||

(नोटबंदी के बाद का असर जब 500 और 1000 के पुराने नोट सरकार ने बंद कर दिए थे |)

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